वाइल्डलाइफ एसओएस में मनाया गया विश्व जैव विविधता दिवस, जानिए कैसे बचाए गए हाथियों ने बंजर जमीन को एक स्वर्ग जैसे अभयारण्य में बदला है।

22 मई को विश्व जैव विविधता दिवस मनाया जाता है इसके उपलक्ष्य में वाइल्डलाइफ एसओएस आगरा दिल्ली हाईवे स्थित उनके हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र में बचाए गए हाथियों के उल्लेखनीय योगदान पर प्रकाश डालता है, हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र संकट और दुर्व्यवहार से बचाए गए 30 से अधिक हाथियों के लिए एक अभयारण्य बन गया है, इसे 2010 में स्थापित किया गया था यह केंद्र एक संपन्न पारिस्थिति का तंत्र भी बन गया है, जिसका बड़ा हिस्सा स्वयं हाथियों को जाता है, हाथियों को कीस्टोन प्रजाति के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि उनकी उपस्थिति और गतिविधियों को उनके पर्यावरण पर बड़ा प्रभाव पड़ता है, हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र में यह प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जहां हाथियों ने अपने परिवेश को एक समृद्ध जैव विविधता के रूप में बदल दिया है।

जैसे की वह केंद्र में घूमते हैं, हाथी चरते और शौच करते समय स्थानीय वनस्पतियों और जीवों की बहाली और वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अपने आहार में केवल 35-40% पोषक तत्व ही पचा पाते हैं, जिसका अर्थ है कि उनके मल में बिना पचे बीज और अनाज प्रचुर मात्रा में होते हैं। यह हिरण, पक्षियों और छोटे स्तनधारियों सहित विभिन्न जानवरों के लिए एक मूल्यवान भोजन स्रोत है, और बल्कि एक प्राकृतिक फ़र्टिलाइज़र के रूप में भी कार्य करता है, जो नए पौधों के विकास को बढ़ावा देता है।

सुबह और शाम की अपनी लंबी वॉक के दौरान हाथी इन बीज को कई किलोमीटर तक फैलाते हैं, पेड़ों से फल खाकर हाथी अपने निवास स्थान के भीतर वनस्पति की विविधता को बढ़ाते हैं, केंद्र में इससे विभिन्न पेड़ों और पौधों की वृद्धि हुई है, केंद्र की स्थापना के बाद वाइल्डलाइफ एसओएस ने परिसर के भीतर विभिन्न पौधों और जानवरों की प्रजातियां में धीरे-धीरे वृद्धि देखी है।

केंद्र परिसर के आसपास हाथियों द्वारा कई देसी पौधों की प्रजातियों का प्रचार-प्रसार हुआ है, जिनमें आम, कद्दू, अंगूर शामिल हैं। इस हरी-भरी हरियाली के कारण पक्षियों की प्रजातियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो केंद्र शुरू होने के समय केवल 15 से बढ़कर अब 70 से अधिक प्रजातियाँ हो गई हैं। इनमें से कई पक्षी प्रवासी हैं और अब मौसम के दौरान अक्सर देखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त, साँपों और मॉनिटर लिज़र्ड जैसे अन्य सरीसृपों की सात प्रजातियों को हरियाली के बीच एक घर मिल गया है। तितलियाँ, जो पहले कभी-कभार ही पाई जाती थीं, अब इस क्षेत्र में कम से कम छह अलग-अलग प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ, कार्तिक सत्यनारायण बताया है कि हमारे द्वारा बचाए गए हाथियों को न केवल एक अभयारण्य मिला है, जहां वे शांति और संतुष्टि में रह सकते हैं, बल्कि वे प्रकृति के सच्चे संरक्षक भी बन गए हैं। केंद्र में उनकी उपस्थिति स्थानीय जैव विविधता पर गहरा प्रभाव डालती है, और यह हाथियों द्वारा अपने आवास में निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है।वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव, गीता शेषमणि ने कहा, “जब केंद्र की स्थापना की गई थी, तब हमारा लक्ष्य बचाए गए हाथियों के लिए एक प्राकृतिक वातावरण बनाना था। हमने कई देसी पेड़ लगाए, जिनमें मियावाकी जंगल भी शामिल है। तब से, हाथियों द्वारा बीज बिखेरने के कारण कई नए पेड़ उग आए हैं।