हाईकोर्ट के आदेश पर बेटी तो पालनहार मां को सुपुर्द कर दी गई लेकिन गोद देने की विधि प्रक्रिया चार महीने में भी पूरी नहीं कराई गई, पालनहार मां अपनी ओर से औपचारिकता पूरी कर चुकी है। उसके बावजूद भी संज्ञान नहीं लिया गया। आदेश की अवमानना पर अब दोबारा से पालनहार मां हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। उधर बिटिया भी अपनों का प्यार पाकर फूली नहीं समा रही है।
पूरा मामला
टेढ़ी बगिया निवासी एक पालनहार मां से उसकी आठ साल की बेटी छीनकर बाल गृह में निरुद्ध कर दी गई थी। बेटी की आजादी को लेकर पालनहार मां ने जिम्मेदारों से खूब गुहार लगाई। चिलचिलाती धूप में जिला मुख्यालय पर धरना दिया,है अधिकारी से फरियाद लगाई लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा। यहां तक कि बेटी से मिलने पर भी पाबंदी लगा दी। बेटी से मिलने की आस में पालनहार मां घंटों बाल गृह के बाहर रोती रहती थी। जब कहीं से राहत नहीं मिली तो पालनहार मां ने चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस के सहयोग से इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें सभी तथ्यों को शामिल किया। हाईकोर्ट के आदेश पर बेटी को लंबे समय बाद पालनहार मां के सुपुर्द कर दिया गया तथा एक साप्ताह में गोद देने की प्रक्रिया पूरी कराने के आदेश भी दिए , पालनहार मां ने नरेश पारस के सहयोग से डीएम, डीपीओ, निदेशक महिला कल्याण विभाग, केंद्रीय दत्तक ग्रहण इकाई और बाल कल्याण समिति को पत्र दिए लेकिन किसी ने संज्ञान नहीं लिया। हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना पर पालनहार मां एक बार फिर से हाईकोर्ट में याचिका दायर करेगी।
सीडब्ल्यूसी का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण
बालिका के मामले में बाल कल्याण समिति द्वारा दिए आदेश को हाईकोर्ट ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया बताते हुए कहा था कि समिति ने बाल हित में फैसला नहीं दिया है। साथ ही डीपीओ की रिपोर्ट को भी लापरवाही भरा बताया था। हाईकोर्ट में इनकी खूब किरकिरी हुई थी। उसके बाद भी सबक नहीं लिया। कोर्ट की अवमानना भी भारी पड़ सकती है।
अंजान सख्श को देख सहम जाती है बेटी*
बाल गृह से आने के बाद बेटी डरी हुई है। अंजान व्यक्ति को देखकर सहम जाती है। उसे डर है कि कहीं दुबारा से उसे बाल गृह में बंद न करा दें। वह परिवार में घुल मिल रही है। इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने जाती है। शिक्षकों की आंख का तारा बनी हुई है। शादी समारोह में शामिल होकर बहुत खुश होती है। नरेश पारस ने कहा कि बच्ची अपनी मां के बिना नहीं रह पाएगी। हाईकोर्ट ने भी फैसला देते वक्त मार्मिक टिप्पणी की है कि कानूनी दांव पेंच से बेटी को मां से जुदा करना तो आसान है लेकिन यशोदा जैसी मां दे पाना मुश्किल है।